Tuesday, August 24, 2010

गांव की सुबह

अंधेरे में लिपटा आसमान
भागा जा रहा है
किसी अनिश्चित दिशा में
शायद शून्य की तरफ।

अभी ठीक कुछ ही क्षणों में
बोल उठेगा गुबरैला मुर्गा
धूल-भरी गलियों में
कोमल पांख पसार
धूप सेंकेगी
धरती की सबसे छोटी गौरैया।

कांव-कांव करता कौआ
तोड़ेगा सबकी
अलसायी नींद
तभी सुन पड़ेगी
गांव की सबसे ऊंची मस्जिद से
किसी पेशेवर मौलवी की
लंबी,
रिरिआती आवाज!

सबसे पहले
खूंटे से बंधी
रंभाती बुलायेगी गाय
भर देगी घर की
सबसे बड़ी टहरी
देख जिसे बच्चे
नाचेंगे सबसे ज्यादा
निज माताओं को देते उपालम्भ
सूखा ली हैं जिनने
स्तन की सारी नसें
फूटता था जिससे, कभी
अमर
संजीवनी स्रोत!
हंसेगी तभी
सारी दिशाएं
और ठीक क्षण भर बाद
दिख जायेगा गोल
लाल भभूका सूरज
मानों सुदर परी एक
थोप ली हो
जिद में किसी की
दुनिया भर का सिन्दूर
अपने दिव्य भाल पर
या कि निकला हो अभी-अभी
लेकर धरती का सत्
चने का नया अंकुर।

लो, आ गया
क्षितिज पर प्यारा सूरज
हंस दिया हो जैसे
लाल, सुर्ख होठों से
रात का जन्मा बच्चा एक
फंसी है जिसमें बाकी
उसकी आधी हंसी।     
(5.10.96)

1 comment:

  1. लो, आ गया
    क्षितिज पर प्यारा सूरज
    हंस दिया हो जैसे
    लाल, सुर्ख होठों से
    रात का जन्मा बच्चा एक
    फंसी है जिसमें बाकी
    उसकी आधी हंसी।
    सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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