Sunday, August 15, 2010

मौत की सालगिरह

ईमान बेचकर जीनेवाले लोग
अपनी आत्मा को
अपनी मौत को
और अपने वजूद को
मुट्ठी में लिए चलते हैं
मौत की सालगिरह मनाते हैं
मगर हम जानते हैं
मरना महज फैशन है
लोगों को रिझाने के वास्ते
उनको ठोंककर सुलाने के वास्ते
डावर की घुट्टी है, जिसे
हर दूधमुंहे को पिलाते हैं
लेकिन
वे बताएंगे मौत की असलियत
जिन्हें जीने के लिए
रोज मरना होता है
कई-कई बार
इसीलिए शायद
वे मौत से कहीं ज्यादा डरते हैं
रोज-रोज सालगिरह नहीं आती उनके यहां
सिर्फ एक बार आता है, उनका जन्मदिन
और दिखा जाता है मौत को
एक साहसपूर्ण ठेंगा
जीवन के बाकी बचे दिन के लिए।

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