1.
पकी ईंटों से बनी उनकी दीवारें
कितनी निर्मम
कितनी कठोर होती हैं
भेदकर जिसे
अंदर नहीं जा सकती
बाहर की ठंडी और गुदगुदी हवा
डोल जाता है जिसके छूते ही
बड़ा से बड़ा पेड़
जिसकी कई शाखाएं बेजान होती हैं
और सज जाता है विशाल वृक्ष
अपनी कचनार पत्तियों के साथ।
कई बार
कई लड़कियां
आती हैं सहेलियों के साथ
सोचती हुई
कि ढाह देंगी
इन पुरानी पड़ी दीवारों को
कि अंदर बैठा खौफ
बोलता है ऊंची आवाज में-
दीवारों के टूटने से घर
घर नहीं रह जायेगा
सड़क आम हो जायेगी
जहां कोई भी असभ्य राहगीर
चलते-चलते
मूत्रत्याग की इच्छा रखेगा।
2.
लड़कियां केवल तभी खुश होती हैं
जब मौसियां थमाती हैं
हाथ में
छोटी-सी अर्जी
लिखा हो जिसमें
मिलनेवाले का नाम
कि लड़कियां दौड़ती हुई आती हैं
केवल उसी रात सपने देखती हैं
देर रात
अधजगे में।
3.
बिछड़ने की सूरत में
अंदर से कितनी कठोर होती हैं लड़कियां
खुद को मजबूत करने की कोशिश में
विदा हो लेती हैं अचानक
कि जैसे
मिली ही न हो किसी से
गुस्सैल आंखों में
शांत नदी को समेटे हुए
बह निकलती है जो
रात में
एकांत के बिस्तरे पर। (20.2.96)
प्रकाशन: न्यूजब्रेक, साहित्य वार्षिकी 2001; आजकल, सितंबर 2007
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