Saturday, August 28, 2010

वैभव कटे वृक्षों का

बीसवीं शती के आखिरी दशक में
शहर की चकाचौंध
और भागदौड़ से दूर
विस्तृत धरती के सबसे छोटे कोने में
बसा है हमारा प्यारा गांव
जहां दशहरे के पुनीत अवसर पर
दिखता है बैठा प्यारा नीलकंठ
अड़ियल घोड़े-से
सीधे तने बिजली के खंभे पर ।

जाने कहां गये बचपन के वे दिन
जब हाथ में लट्टू ले
दौड़ता था लोहार की भाथी के पास
काफी मिहनत के बाद
तेज कर पाता था
मसाला पीसने के सिलउट पर
लोहे की नुकीली गूंज
खेलते थे मिलजुल
गाँव  के सारे बच्चे
अपना प्रिय खेल-‘बेलाफार’।

हल से छूटे बैल
घास चरकर बथान लौटती गाएं
स्कूल से थककर चूर मास्टर साऽब
और लड़कों के लौटने से पहले
काबिज हो जाती थी घरों में
अंधेरी डरावनी रात।

खत्म होती है मानवता और संवेदना
शहरों/महानगरों में जैसे
ठीक खत्म हो गये सारे पेड़
लुप्त हो गई वृक्षों की कई प्रजातियां
अमर संजीवनी बूटियां
निचोड़कर रस करते थे अमरपान
जेठ की दुपहरी और लहलहाती धूप में
लुट गया पशुओं का घर
छाया में जिसकी
जीभ निकाल हांफता कुत्ता
बैठता घंटों
मनुष्यों का शागिर्द बना।

पेड़ों के कटने से
कट गई हमारी आत्मा
बसती थी जो
उनसे जुड़ी कहानियों, कल्पनाओं में
दरवाजे के सामने जो खड़ा था
मोटा काला पीपल का पेड़
नीचे जिसके हुआ था
कई पूर्वजों का तर्पण, दान
कई वर्षों से जान लो
वहीं का वहीं गड़ा और अड़ा था
भीषण गर्मियों में पत्तियों के हिलने से
मिलती थी अजीब राहत
पसीने से लतपथ भारी शरीर को।

वे गये तो गईं हमारी यादें
सबसे ऊंची डाल से जिनकी
कूदता था छप! छप!!
रात के अंधेरे में
कूदता जैसे अब उसका भूत
जब कभी आती थी वर्षा
पहली चोट सहता
बूढ़ा आहत पीपल
दूर से आती कंटीली
बर्फीली हवा कंपाती रह रह
मनुष्यों के आंगन में
बिजली गिरने के भय से पहले
लड़ता वही, करता दो-दो हाथ
कटता उसी का सर
उसी की ठूंठ बनती
आश्रय बनता था वही
पहली बार
‘मरी’ की चिंता में बैठे
चीलों-गिद्धों के लिए।

हहास करती आती बाढ़ के समय
हिलतीं उसकी जड़ें किंतु
बांधे रहती मिट्टी को
टिका था जिस पर प्यारा गांव
रहते जहां कलाकार कई
ढेरों कवि
रचनाओं में जिनकी
चोर-कदम आती है याद
कटे वृक्षों की।

मूर्ख नहीं हैं हम
नहीं है गंवार कोई
कि भूल जायें संजोना पेड़ों को
उगा लिये हैं इसीलिए
गमलों में कैक्टस
ढूंस लिये हैं 
कई जंगली पौधे
मत कहो मुझे पर्यावरण विरोधी
जानता हूं उसके दर्शन
उसकी महत्ता
परिचित हूं गुणकारी तत्वों से उसके
दिखती नहीं तुम्हें
मुठरिया सीज की टहनी
टिका रखी है कोने में
सउरीघर के
जनी है जहां
एक बेखबर मां ने
सबसे कमजोर क्षण का बच्चा।
(1.1.97)

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