Wednesday, August 25, 2010

कवि का चेहरा

आ सको अगर
तो आओ मेरी कविता में
नंगे पांव चलकर
पारकर तप्त
रेतीले मैदान
कि हों फोड़े
पड़े  छाले
रिसे बूंद खून की
तो दिखे साफ
तुम्हारा
अपना ही चेहरा।

(18.12.96)

1 comment:

  1. रिसे बूंद खून की
    तो दिखे साफ
    तुम्हारा
    अपना ही चेहरा।

    बहुत गहरे भाव ...

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